Monday, March 5, 2018

कागज़ और कलम (CXIII)


आजकल बिना कुछ लिखे नींद नहीं आती l शायद लिखकर ही मैं अपनी बात बयान कर पाती हूँ l मैं क्या सोचती हूँ , क्या समझती हूँ , क्या व्यक्त करना चाहती हूँ - यह और कोई समझे या ना समझे , ये कलम ज़रूर समझ जाती है l

मिली हूँ मैं बहुत से लेखकों से , किताबें भी बहुत सी पढ़ी हैं l अच्छे लेखक और अच्छी किताबें कुछ ही होती हैं l  कुछ ही होती हैं जो आँख में आँसू और चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं l शायद वो किताबें दर्द से , दिल से लिखी गयी हैं l

मेरे लिए लिखना एक कला नहीं , खुदी से बात करने का ज़रिया है l  लिखकर एक शांति , एक सुकून सा मिलता है l  मानो दिन भर की सारी थकान , सारा चिड़ चिड़ापन इस कागज़ पर उतार दिया हो l मानो मेरा सारा दर्द इस कागज़ ने सुन लिया हो l 


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