आज अचानक थकान सी महसूस हुई । शरीर की नहीं । दिल दिमाग की थकान । दिल जो दुनिया से झूझते - झूझते थक गया है और दिमाग यही सोचने में की क्या गलत है और क्या सही। खैर, सही गलत की परिभाषा तो कुछ नहीं है । मेरे लिए जो सही वो तुम्हारे लिए गलत हो सकता है, और अक्सर ऐसा ही होता आया है। इसलिए शायद अब मैं थक गयी हूँ। थक गयी हूँ यह समझाते - समझाते की मैं क्या चाहती हूँ, क्या सोचती हूँ , क्या महसूस करती हूँ। थक गयी हूँ समझते- समझते इस दुनिया के नियम और कानून । हाँ ! कानून पढ़ा है मैंने। वकालत भी कर ली । शायद इसलिए ही सही गलत की परिभाषा अब थोड़ी डगमगा सी गयी । दो पक्ष सुनो तो दोनों ही सही और दोनों ही गलत लगते हैं । ये जो दिल दिमाग है न, बड़े ही अजीब हैं । हमेशा एक दूसरे से उल्टी ही दिशा में चलते हैं । अक्सर ही जीवन के छोटे - छोटे वृतांत पशोपेश में डाल देते हैं । मैं कभी दिल की तो कभी दिमाग की सुन लेती हूँ । ऐसा ही होता आया है अब तक, ऐसा ही करती आई हूँ मैं अब तक । यही कर कर के अब थक गई हूँ । झूझते - झूझते , समझते समझाते थक गई हूँ ।
All this while I was finding happiness in others.I have realised now that happiness is within me.
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